इन कथाओं को मुनि (नारद) से सुनकर राजा उत्तानपाद का पुत्र (ध्रुव) भगवान् के विषय में प्रबुद्ध हो सका और मृत्यु के सिर पर पाँव रखते हुए वह भगवान् के धाम पहुँच गया।
तात्पर्य
अपना शरीर त्याग करते समय राजा उत्तानपाद के पुत्र महाराज ध्रुव के पास सुनन्द तथा अन्य पुरुष आये जिन्होंने भगवद्धाम में उनका स्वागत किया। उन्होंने अल्पायु में, जब वे बालक ही थे, इस संसार को त्याग दिया था, यद्यपि उन्होंने अपने पिता का सिंहासन प्राप्त कर लिया था और उनके अपने कई पुत्र भी थे। चूँकि उन्हें इस संसार को छोडऩा था, इसलिए मृत्यु उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। किन्तु उन्होंने मृत्यु की परवाह नहीं की और वे उसी शरीर सहित एक आध्यात्मिक विमान पर आरूढ़ होकर उन महर्षि नारद की संगति के कारण सीधे विष्णुलोक पहुँचे जिन्होंने उन्हें भगवान् की लीलाएँ सुनाई थीं।
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