इष्ट्वा—पूजा करके; अग्नि—अग्नि; जिह्वम्—जीभ को; पयसा—आहुति से; पुरुषम्—परम पुरुष को; यजुषाम्—समस्त यज्ञों के; पतिम्—स्वामी; निम्लोचति—अस्त होते हुए; अर्के—सूर्य; आसीनम्—बैठे हुए; अग्नि-अगारे—यज्ञशाला में; समाहितम्—पूर्णतया समाधि में ।.
अनुवाद
सूर्य अस्त हो रहा था और मुनि भगवान् विष्णु को, जिनकी जीभ यज्ञ की अग्नि है, आहुति देने के बाद समाधि में आसीन थे।
तात्पर्य
अग्नि को भगवान् विष्णु की जीभ माना जाता है और अग्नि में अन्न तथा घी की जो आहुतियाँ डाली जाती हैं, वे उनके द्वारा स्वीकार की जाती हैं। यह उन सभी यज्ञों का नियम है जिनके स्वामी भगवान् विष्णु हैं। दूसरे शब्दों में, भगवान् विष्णु की तुष्टि में सारे देवताओं तथा अन्य जीवों की तुष्टि सम्मिलित रहती है।
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