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श्लोक 3.15.10  |
एष देव दितेर्गर्भ ओज: काश्यपमर्पितम् ।
दिशस्तिमिरयन् सर्वा वर्धतेऽग्निरिवैधसि ॥ १० ॥ |
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शब्दार्थ |
एष:—यह; देव—हे प्रभु; दिते:—दिति का; गर्भ:—गर्भ; ओज:—वीर्य; काश्यपम्—कश्यप का; अर्पितम्—स्थापित किया गया; दिश:—दिशाएँ; तिमिरयन्—पूर्ण अंधकार उत्पन्न करते हुए; सर्वा:—सारे; वर्धते—बढ़ाता है; अग्नि:—आग; इव— सदृश; एधसि—ईंधन ।. |
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अनुवाद |
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जिस तरह ईंधन अग्नि को वर्धित करता है उसी तरह दिति के गर्भ में कश्यप के वीर्य से उत्पन्न भ्रूण ने सारे ब्रह्माण्ड में पूर्ण अंधकार उत्पन्न कर दिया है। |
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तात्पर्य |
ब्रह्माण्ड भर में फैले अंधकार को यहाँ पर उस भ्रूण द्वारा उत्पन्न बताया गया है, जो कश्यप के वीर्य से दिति के गर्भ में स्थापित किया गया था। |
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