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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 15: ईश्वर के साम्राज्य का वर्णन  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  3.15.11 
मैत्रेय उवाच
स प्रहस्य महाबाहो भगवान् शब्दगोचर: ।
प्रत्याचष्टात्मभूर्देवान् प्रीणन् रुचिरया गिरा ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने कहा; स:—वह; प्रहस्य—हँसते हुए; महा-बाहो—हे शक्तिशाली भुजाओं वाले (विदुर); भगवान्— समस्त ऐश्वर्यों के स्वामी; शब्द-गोचर:—दिव्य ध्वनि के द्वारा समझा जाने वाला; प्रत्याचष्ट—उत्तर दिया; आत्म-भू:—ब्रह्मा ने; देवान्—देवताओं को; प्रीणन्—तुष्ट करते हुए; रुचिरया—मधुर; गिरा—शब्दों से ।.
 
अनुवाद
 
 श्रीमैत्रेय ने कहा : इस तरह दिव्य ध्वनि से समझे जाने वाले ब्रह्मा ने देवताओं की स्तुतियों से प्रसन्न होकर उन्हें तुष्ट करने का प्रयास किया।
 
तात्पर्य
 ब्रह्मा दिति के दुष्कर्मों को समझ गये, अत: वे सारी स्थिति पर हँसे। उन्होंने वहाँ पर उपस्थित देवताओं को ऐसे शब्दों में उत्तर दिया जिन्हें वे समझ सकें।
 
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