श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 15: ईश्वर के साम्राज्य का वर्णन  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.15.12 
ब्रह्मोवाच
मानसा मे सुता युष्मत्पूर्वजा: सनकादय: ।
चेरुर्विहायसा लोकाल्लोकेषु विगतस्पृहा: ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
ब्रह्मा उवाच—ब्रह्मा ने कहा; मानसा:—मन से उत्पन्न; मे—मेरे; सुता:—पुत्र; युष्मत्—तुम्हारी अपेक्षा; पूर्व-जा:—पहले उत्पन्न; सनक-आदय:—सनक इत्यादि ने; चेरु:—यात्रा की; विहायसा—अन्तरिक्ष में यान द्वारा या आकाश में उडक़र; लोकान्— भौतिक तथा आध्यात्मिक जगतों तक; लोकेषु—लोगों के बीच; विगत-स्पृहा:—किसी इच्छा से रहित ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्माजी ने कहा : मेरे मन से उत्पन्न चार पुत्र सनक, सनातन, सनन्दन तथा सनत्कुमार तुम्हारे पूर्वज हैं। कभी कभी वे बिना किसी विशेष इच्छा के भौतिक तथा आध्यात्मिक आकाशों से होकर यात्रा करते हैं।
 
तात्पर्य
 जब हम इच्छा की बात करते हैं, तो हमारा अभिप्राय भौतिक इन्द्रियतृप्ति से होता है। सनक, सनातन, सनन्दन तथा सनत्कुमार जैसे सन्तपुरुषों में कोई भौतिक इच्छा नहीं है, अपितु वे कभी कभी सारे ब्रह्माण्ड में स्वेच्छा से भक्ति का प्रचार करने के लिए यात्रा करते हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥