मन्दार—मन्दार; कुन्द—कुन्द; कुरब—कुरबक; उत्पल—उत्पल; चम्पक—चम्पक; अर्ण—अर्ण फूल; पुन्नाग—पुन्नाग; नाग—नागकेशर; बकुल—बकुल; अम्बुज—कुमुदिनी; पारिजाता:—पारिजात; गन्धे—सुगन्ध; अर्चिते—पूजित होकर; तुलसिका—तुलसी; आभरणेन—माला से; तस्या:—उसकी; यस्मिन्—जिस वैकुण्ठ में; तप:—तपस्या; सु-मनस:—अच्छे मन वाले, वैकुण्ठ मन वाले; बहु—अत्यधिक; मानयन्ति—गुणगान करते हैं ।.
अनुवाद
यद्यपि मन्दार, कुन्द, कुरबक, उत्पल, चम्पक, अर्ण, पुन्नाग, नागकेशर, बकुल, कुमुदिनी तथा पारिजात जैसे फूलने वाले पौधे दिव्य सुगन्ध से पूरित हैं फिर भी वे तुलसी द्वारा की गई तपस्या से सचेत हैं, क्योंकि भगवान् तुलसी को विशेष वरीयता प्रदान करते हैं और स्वयं तुलसी की पत्तियों की माला पहनते हैं।
तात्पर्य
यहाँ पर तुलसी की पत्तियों की महत्ता का स्पष्ट उल्लेख है। भक्तिमय सेवा में तुलसी के पौधे तथा उनकी पत्तियाँ अतीव महत्त्वपूर्ण हैं। भक्तों के लिए संस्तुति की गई है कि वे प्रति दिन तुलसी के पौधे को सींचें तथा भगवान् की पूजा के लिए उसकी पत्तियाँ एकत्र करें। एक बार एक नास्तिक स्वामी ने कहा, “तुलसी के पौधे को सींचने से क्या लाभ? इससे अच्छा तो बैंगन का सींचना होगा; बैंगन सींचने से कुछ फल मिल सकेंगे, किन्तु तुलसी को सींचने से क्या लाभ?” ये मूर्ख प्राणी भक्ति से अपरिचित होने के कारण कभी कभी सामान्य लोगों की शिक्षा के साथ उत्पात मचातें हैं।
आध्यात्मिक जगत की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वहाँ भक्तों के मध्य ईर्ष्या-द्वेष नहीं होता। यह बात फूलों तक में लागू होती है, जो तुलसी की महानता से परिचित होते हैं। चारों कुमारों ने जिस वैकुण्ठ जगत में प्रवेश किया वहाँ के पक्षी तथा फूल तक भगवान् की सेवा के प्रति सचेष्ट हैं।
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