लक्ष्मियाँ अपने उद्यानों में दिव्य जलाशयों के मूँगे से जड़े किनारों पर तुलसीदल अर्पित करके भगवान् की पूजा करती हैं। भगवान् की पूजा करते समय वे उभरे हुए नाकों से युक्त अपने अपने सुन्दर मुखों के प्रतिबिम्ब को जल में देख सकती हैं और ऐसा प्रतीत होता है मानो भगवान् द्वारा मुख चुम्बित होने से वे और भी अधिक सुन्दर बन गई हैं।
तात्पर्य
सामान्यतया जब किसी स्त्री का पति उसका चुम्बन करता है, तो उसका मुख अधिक सुन्दर हो जाता है। वैकुण्ठलोक में भी, यद्यपि लक्ष्मीजी उतनी ही सुन्दर हैं जितनी कि कल्पना की जा सकती है, तो भी वे भगवान् द्वारा चुम्बित होने के लिए प्रतीक्षित रहती हैं जिससे उनका मुख और अधिक सुन्दर लगे। जब लक्ष्मीजी अपने उद्यान में तुलसी दलों से भगवान् की पूजा करती हैं, तो दिव्य निर्मल जल वाले तालाबों में उनका सुन्दर मुख दिखता है।
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