चारों बालक मुनि, जिनके पास अपने शरीरों को ढकने के लिए वायुमण्डल के अतिरिक्त कुछ नहीं था, पाँच वर्ष की आयु के लग रहे थे यद्यपि वे समस्त जीवों में सबसे वृद्ध थे और उन्होंने आत्मा के सत्य की अनुभूति प्राप्त कर ली थी। किन्तु जब द्वारपालों ने, जिनके स्वभाव भगवान् को तनिक भी रुचिकर न थे, इन मुनियों को देखा तो उन्होंने उनके यश का उपहास करते हुए अपने डंडों से उनका रास्ता रोक दिया, यद्यपि ये मुनि उनके हाथों ऐसा बर्ताव पाने के योग्य न थे।
तात्पर्य
चारों मुनि ब्रह्मा के सर्वप्रथम उत्पन्न पुत्र थे। अत: शिवजी समेत अन्य सारे जीव बाद में उत्पन्न हुए जीव हैं, अतएव वे चारों कुमारों से छोटे हैं। यद्यपि वे पाँच वर्षीय बालकों जैसे लग रहे थे और नंगे विचरण कर रहे थे, किन्तु वे अन्य सारे जीवों से अधिक वय के थे और उन्होंने आत्म- साक्षात्कार प्राप्त कर लिया था। ऐसे सन्तों को वैकुण्ठलोक के साम्राज्य में प्रविष्ट होने से मना नहीं किया जाना था, किन्तु संयोगवश द्वारपालों ने उनके प्रवेश पर आपत्ति की। यह उचित नहीं था। भगवान् कुमारों जैसे मुनियों की सेवा करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं, किन्तु यह बात जानते हुए भी द्वारपालों ने आश्चर्यजनक रूप से तथा क्रोधवश उन्हें प्रवेश करने से मना किया।
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