जब वैकुण्ठलोक के द्वारपालों ने, जो कि सचमुच ही भगवद्भक्त थे, यह देखा कि वे ब्राह्मणों द्वारा शापित होने वाले हैं, तो वे तुरन्त बहुत भयभीत हो उठे और अत्यधिक चिन्तावश ब्राह्मणों के चरणों पर गिर पड़े, क्योंकि ब्राह्मण के शाप का निवारण किसी भी प्रकार के हथियार से नहीं किया जा सकता।
तात्पर्य
यद्यपि संयोगवश द्वारपालों ने ब्राह्मणों को वैकुण्ठ के द्वार में प्रवेश करने से रोक कर भूल की थी, किन्तु उन्हें तुरन्त ही शाप की गम्भीरता का भान हो गया। अपराध कई प्रकार के होते हैं, किन्तु सबसे बड़ा अपराध है भगवद्भक्त का अपमान करना। चूँकि द्वारपाल भी भगवद्भक्त थे, अतएव उन्हें अपनी भूल समझ में आ गई और जब चारों कुमार उन्हें शाप देने जा रहे थे तो वे भयभीत हो उठे।
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