श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 15: ईश्वर के साम्राज्य का वर्णन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.15.4 
देवदेव जगद्धातर्लोकनाथशिखामणे ।
परेषामपरेषां त्वं भूतानामसि भाववित् ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
देव-देव—हे देवताओं के स्वामी; जगत्-धात:—ब्रह्माण्ड को धारण करने वाले; लोकनाथ-शिखामणे—हे अन्य लोकों के समस्त देवताओं के शिरो-मणि; परेषाम्—आध्यात्मिक जगत का; अपरेषाम्—भौतिक जगत का; त्वम्—तुम; भूतानाम्—सारे जीवों के; असि—हो; भाव-वित्—मनोभावों को जानने वाले ।.
 
अनुवाद
 
 हे देवताओं के देव, हे ब्रह्माण्ड को धारण करने वाले, हे अन्यलोकों के समस्त देवताओं के शिरोमणि, आप आध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों ही जगतों में सारे जीवों के मनोभावों को जानते हैं।
 
तात्पर्य
 चूँकि ब्रह्मा भगवान् के ही तुल्यप्राय हैं इसीलिए उन्हें यहाँ पर देवदेव कहकर सम्बोधित किया गया है और चूँकि वे इस ब्रह्माण्ड के गौण स्रष्टा हैं इसलिए उन्हें ब्रह्माण्ड को धारण करने वाला कहा गया है। वे सारे देवताओं के मुखिया हैं इसलिए उन्हें देवताओं का शिरोमणि कहा गया है। आध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों ही जगतों में जो कुछ घटित हो रहा है उसे समझ पाना उनके लिए कठिन नहीं। वे हर एक के हृदय की बात तथा हर एक के मनोभाव को जानते हैं। इसीलिए उनसे इस घटना की व्याख्या करने के लिए अनुरोध किया गया कि आखिर दिति का गर्भ सारे ब्रह्माण्ड के लिए ऐसी चिन्ता का कारण क्यों बना है?
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥