जो लोग श्वास प्रक्रिया को साध कर मन तथा इन्द्रियों को वश में कर लेते हैं और इस प्रकार जो अनुभवी प्रौढ़ योगी हो जाते हैं उनकी इस जगत में पराजय नहीं होती। ऐसा इसलिए है, क्योंकि योग में ऐसी सिद्धि के कारण, उन्होंने आपकी कृपा प्राप्त कर ली है।
तात्पर्य
यहाँ पर योग क्रियाओं के प्रयोजन को समझाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि अनुभवी योगी श्वास प्रक्रिया को वश में करके इन्द्रियों तथा मन पर पूरा नियंत्रण प्राप्त कर लेता है। अतएव श्वास प्रक्रिया को वश में करना योग का चरम उद्देश्य नहीं है। योग-क्रियाओं का असली प्रयोजन मन तथा इन्द्रियों को वश में करना है। जिस किसी ने ऐसा नियंत्रण प्राप्त कर लिया है उसे अनुभवी प्रौढ़ योगी समझा जाना चाहिए। यहाँ यह इंगित किया गया है कि मन तथा इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने वाले योगी को भगवान् का असली वर प्राप्त रहता है और उसे कोई भय नहीं रहता। दूसरे शब्दों में, मनुष्य जब तक मन तथा इन्द्रियों पर नियंत्रण प्राप्त नहीं कर लेता तब तक वह भगवान् की कृपा तथा वर प्राप्त नहीं कर सकता। ऐसा तभी सम्भव है जब वह पूरी तरह कृष्णभावनामृत में संलग्न रहे। जिस व्यक्ति की इन्द्रियाँ तथा मन सदैव भगवान् की दिव्य प्रेमाभक्ति में लगे रहते हैं, उसके भौतिक कार्यों में लगे रहने की सम्भावना नहीं रहती। भगवान् के भक्त ब्रह्माण्ड में कहीं भी पराजित नहीं होते। कहा गया है नारायण-परा: सर्वे जो नारायणपर है, अर्थात् भगवान् का भक्त है, वह कहीं भी भयभीत नहीं होता चाहे उसे नरक भेजा जाय या कि स्वर्ग में भेज दिया जाय (भागवत ६.१७.२८)
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