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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 15: ईश्वर के साम्राज्य का वर्णन  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  3.15.9 
स त्वं विधत्स्व शं भूमंस्तमसा लुप्तकर्मणाम् ।
अदभ्रदयया द‍ृष्टय‍ा आपन्नानर्हसीक्षितुम् ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
स:—वह; त्वम्—तुम; विधत्स्व—सम्पन्न करो; शम्—सौभाग्य; भूमन्—हे परमेश्वर; तमसा—अंधकार द्वारा; लुप्त— निलम्बित; कर्मणाम्—नियमित कार्यों का; अदभ्र—उदार, बिना भेदभाव के; दयया—दया के द्वारा; दृष्ट्या—आपकी दृष्टि द्वारा; आपन्नान्—हम शरणागत; अर्हसि—समर्थ हैं; ईक्षितुम्—देख पाने के लिए ।.
 
अनुवाद
 
 देवताओं ने ब्रह्मा की स्तुति की: कृपया हम पर कृपादृष्टि रखें, क्योंकि हम कष्टप्रद स्थिति को प्राप्त हो चुके हैं; अंधकार के कारण हमारा सारा काम रुक गया है।
 
तात्पर्य
 ब्रह्माण्ड भर में पूर्ण अंधकार के कारण विभिन्न लोकों के नियमित कार्य तथा धंधे रुक गये थे। कभी-कभी इस लोक के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों में दिन-रात का विभाजन नहीं होता। इसी तरह जब सूर्य प्रकाश इस ब्रह्माण्ड के विभिन्न लोकों तक नहीं पहुँचता तो दिन तथा रात में कोई अन्तर नहीं रहता।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥