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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 16: वैकुण्ठ के दो द्वारपालों, जय-विजय को मुनियों द्वारा शाप  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  3.16.1 
ब्रह्मोवाच
इति तद् गृणतां तेषां मुनीनां योगधर्मिणाम् ।
प्रतिनन्द्य जगादेदं विकुण्ठनिलयो विभु: ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
ब्रह्मा उवाच—ब्रह्माजी ने कहा; इति—इस प्रकार; तत्—वाणी; गृणताम्—प्रशंसा करते हुए; तेषाम्—उन; मुनीनाम्—चारों मुनियों का; योग-धर्मिणाम्—ब्रह्म के साथ युक्त होने में लगे हुए; प्रतिनन्द्य—बधाई देकर; जगाद—कहा; इदम्—ये शब्द; विकुण्ठ-निलय:—जिनका धाम चिन्ता से रहित है; विभु:—भगवान् ने ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्माजी ने कहा : इस तरह मुनियों को उनके मनोहर शब्दों के लिए बधाई देते हुए भगवद्धाम में निवास करनेवाले पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् ने इस प्रकार कहा।
 
 
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