श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 16: वैकुण्ठ के दो द्वारपालों, जय-विजय को मुनियों द्वारा शाप  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  3.16.13 
बह्मोवाच
अथ तस्योशतीं देवीमृषिकुल्यां सरस्वतीम् ।
नास्वाद्य मन्युदष्टानां तेषामात्माप्यतृप्यत ॥ १३ ॥
 
शब्दार्थ
ब्रह्मा—ब्रह्माजी ने; उवाच—कहा; अथ—अब; तस्य—परमेश्वर का; उशतीम्—मनोहर; देवीम्—चमकते; ऋषि-कुल्याम्— वैदिक स्तोत्रों की शृंखला के समान; सरस्वतीम्—वाणी; न—नहीं; आस्वाद्य—सुनकर; मन्यु—क्रोध; दष्टानाम्—काटा गया; तेषाम्—उन मुनियों के; आत्मा—मन; अपि—यद्यपि; अतृप्यत—तुष्ट किया ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्मा ने आगे कहा : यद्यपि मुनियों को क्रोध रूपी सर्प ने डस लिया था, किन्तु उनकी आत्माएँ भगवान् की उस मनोहर तथा तेजपूर्ण वाणी को सुनकर अघाई नहीं थीं जो वैदिक मंत्रों की शृंखला के समान थी।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥