भगवन्तं परिक्रम्य प्रणिपत्यानुमान्य च ।
प्रतिजग्मु: प्रमुदिता: शंसन्तो वैष्णवीं श्रियम् ॥ २८ ॥
शब्दार्थ
भगवन्तम्—भगवान् को; परिक्रम्य—प्रदक्षिणा करके; प्रणिपत्य—नमस्कार करके; अनुमान्य—जानकर; च—तथा; प्रतिजग्मु:—वापस आये; प्रमुदिता:—अतीव हर्षित; शंसन्त:—प्रशंसा करते हुए; वैष्णवीम्—वैष्णवों के; श्रियम्—ऐश्वर्य की ।.
अनुवाद
मुनियों ने भगवान् की प्रदक्षिणा की, उन्हें नमस्कार किया तथा दिव्य वैष्णव ऐश्वर्य को जान लेने पर वे अत्यधिक हर्षित होकर लौट आये।
तात्पर्य
अब भी हिन्दू मन्दिरों में भगवान् की प्रदक्षिणा करने की सम्मानीय प्रथा है। विशेष रूप से वैष्णव मन्दिरों में अर्चाविग्रह को नमस्कार करने तथा मन्दिर की कम-से-कम तीन बार परिक्रमा करने की व्यवस्था रहती है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.