श्रीमद् भागवतम
हिंदी में पढ़े और सुनें
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् भगवद गीता
श्रीमद् भागवतम
श्रीचैतन्य चरितामृत
श्रीकृष्ण - लीला पुरुषोत्तम भगवान
वैष्णव भजन
संसाधन
AudioBooks
संस्कृत शब्द कोष
वैष्णव कैलेंडर / पंचांग
Download
संपर्क
भागवत पुराण
»
स्कन्ध 3: यथास्थिति
»
अध्याय 16: वैकुण्ठ के दो द्वारपालों, जय-विजय को मुनियों द्वारा शाप
»
श्लोक 3
श्लोक
3.16.3
यस्त्वेतयोर्धृतो दण्डो भवद्भिर्मामनुव्रतै: ।
स एवानुमतोऽस्माभिर्मुनयो देवहेलनात् ॥ ३ ॥
शब्दार्थ
य:
—जो;
तु
—लेकिन;
एतयो:
—जय तथा विजय के विषय में;
धृत:
—दिया गया;
दण्ड:
—दण्ड;
भवद्भि:
—आपके द्वारा;
माम्
—मुझको;
अनुव्रतै:
—भक्ति करने वाले;
स:
—वह;
एव
—निश्चय ही;
अनुमत:
—अनुमोदित;
अस्माभि:
—मेरे द्वारा;
मुनय:
—हे मुनियो;
देव
—आपके विरुद्ध;
हेलनात्
—अपराध के कारण ।.
अनुवाद
play_arrowpause
हे मुनियो, आप लोगों ने उन्हें जो दण्ड दिया है उसका मैं अनुमोदन करता हूँ, क्योंकि आप मेरे भक्त हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.
श्रीमद् भगवद्गीता
श्रीमद् भागवतम
श्रीचैतन्य चरितामृत
श्रीकृष्ण लीला
वैष्णव भजन
संस्कृत शब्द कोष
AudioBook
About
वैष्णव कैलेंडरपंचांग
Download
Connect
संपर्क
> हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥