श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 16: वैकुण्ठ के दो द्वारपालों, जय-विजय को मुनियों द्वारा शाप  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  3.16.3 
यस्त्वेतयोर्धृतो दण्डो भवद्‍‌भिर्मामनुव्रतै: ।
स एवानुमतोऽस्माभिर्मुनयो देवहेलनात् ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
य:—जो; तु—लेकिन; एतयो:—जय तथा विजय के विषय में; धृत:—दिया गया; दण्ड:—दण्ड; भवद्भि:—आपके द्वारा; माम्—मुझको; अनुव्रतै:—भक्ति करने वाले; स:—वह; एव—निश्चय ही; अनुमत:—अनुमोदित; अस्माभि:—मेरे द्वारा; मुनय:—हे मुनियो; देव—आपके विरुद्ध; हेलनात्—अपराध के कारण ।.
 
अनुवाद
 
 हे मुनियो, आप लोगों ने उन्हें जो दण्ड दिया है उसका मैं अनुमोदन करता हूँ, क्योंकि आप मेरे भक्त हैं।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥