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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 17: हिरण्याक्ष की दिग्विजय  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.17.10 
सङ्गीतवद्रोदनवदुन्नमय्य शिरोधराम् ।
व्यमुञ्चन् विविधा वाचो ग्रामसिंहास्ततस्तत: ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
सङ्गीत-वत्—मानो गा रहे हों; रोदन-वत्—रोने के समान; उन्नमय्य—उठाकर; शिरोधराम्—गर्दन; व्यमुञ्चन्— निकालते हुए; विविधा:—नाना प्रकार की; वाच:—चीत्कार; ग्राम-सिंहा:—कुत्ते; तत: तत:—जहाँ तहाँ ।.
 
अनुवाद
 
 जहाँ तहाँ कुत्ते अपनी गर्दन ऊपर उठा उठाकर शब्द करने लगे मानो कभी वे गा रहे हों और कभी विलाप कर रहे हों।
 
 
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