श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 17: हिरण्याक्ष की दिग्विजय  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  3.17.11 
खराश्च कर्कशै: क्षत्त: खुरैर्घ्नन्तो धरातलम् ।
खार्काररभसा मत्ता: पर्यधावन् वरूथश: ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
खरा:—गधे; च—तथा; कर्कशै:—कटु; क्षत्त:—हे विदुर; खुरै:—अपने खुरों से; घ्नन्त:—मारते हुए; धरा-तलम्— पृथ्वी पर; खा:-कार—रेंकते हुए; रभसा:—बुरी तरह से संलग्न; मत्ता:—प्रमत्त, पागल; पर्यधावन्—इधर उधर दौडऩे लगे; वरूथश:—झुंडों में ।.
 
अनुवाद
 
 हे विदुर, झुंड के झुंड गधे अपने कठोर खुरों से पृथ्वी पर प्रहार करते हुए तथा जोर जोर से रेंकते हुए इधर उधर दौडऩे लगे।
 
तात्पर्य
 गधों की जाति भी अपने को अत्यन्त आदरणीय समझती है, अत: जब वे इधर उधर झुंडों में दौडऩे लगते हैं, तो मानव समाज के लिए यह अपशकुन माना जाता है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥