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श्लोक 3.17.12  |
रुदन्तो रासभत्रस्ता नीडादुदपतन् खगा: ।
घोषेऽरण्ये च पशव: शकृन्मूत्रमकुर्वत ॥ १२ ॥ |
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शब्दार्थ |
रुदन्त:—रोते हुए; रासभ—गधों के द्वारा; त्रस्ता:—भयभीत; नीडात्—घोंसले से; उदपतन्—ऊपर उडऩे लगे; खगा:—पक्षी; घोषे—गोशाला में; अरण्ये—जंगल में; च—तथा; पशव:—पशु; शकृत्—मल; मूत्रम्—मूत्र; अकुर्वत—त्याग दिया ।. |
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अनुवाद |
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गधों के रेंकने से भयभीत होकर पक्षी अपने घोसलों से निकलकर चीख चीख कर उडऩे लगे और गोशालाओं तथा जंगलों में पशु मल-मूत्र त्यागने लगे। |
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