श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 17: हिरण्याक्ष की दिग्विजय  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  3.17.15 
दृष्ट्वान्यांश्च महोत्पातानतत्तत्त्वविद: प्रजा: ।
ब्रह्मपुत्रानृते भीता मेनिरे विश्‍वसम्प्लवम् ॥ १५ ॥
 
शब्दार्थ
दृष्ट्वा—देखकर; अन्यान्—अन्य लोग; च—यथा; महा—महान; उत्पातान्—अपशकुन; अ-तत्-तत्त्व-विद:—रहस्य को न जानते हुए; प्रजा:—लोग; ब्रह्म-पुत्रान्—ब्रह्मा के पुत्रों (चारों कुमारों); ऋते—के सिवाय; भीता:—अन्यन्त डरे हुए; मेनिरे—सोचा; विश्व-सम्प्लवम्—विश्व का विलय ।.
 
अनुवाद
 
 इस प्रकार के तथा अन्य अनेक अपशकुनों को देखकर ब्रह्मा के चारों ऋषि-पुत्र, जिन्हें जय तथा विजय के पतन एवं दिति के पुत्रों के रूप में जन्म लेने का ज्ञान था, उनके अतिरिक्त सभी लोग भयभीत हो उठे। उन्हें इन उत्पातों के मर्म का पता न था और वे सोच रहे थे कि ब्रह्माण्ड का प्रलय होने वाला है।
 
तात्पर्य
 भगवद्गीता के सप्तम अध्याय के अनुसार प्रकृति के नियम इतने कठोर हैं कि कोई भी जीवात्मा इनका अतिक्रमण नहीं कर सकता। यह भी बताया गया है कि कृष्णभक्ति में पूर्णतया कृष्ण को अर्पित जीवात्मा ही बच सकता है। श्रीमद्भागवत के इस विवरण से हम यह जान सकते हैं कि दो महान् असुरों के जन्म लेने से अनेकानेक प्राकृतिक उत्पात होने प्रारम्भ हो गये। अप्रत्यक्ष रूप से यह समझना चाहिए कि जैसा पहले वर्णन किया जा चुका है, जब भी पृथ्वी पर ऐसे उत्पात सतत होते हैं, तो यह इस बात का सूचक है कि कुछ आसुरी लोग उत्पन्न हो गए हैं, अथवा उनकी संख्या बढ़ गई है। पुराकाल में दिति से उत्पन्न हुए केवल दो असुर थे तो भी इतना अधिक उत्पात हुआ था। आजकल, विशेष रूप से इस कलियुग में, ऐसे उत्पात तो नित्यप्रति ही देखे जाते हैं, जो इसके सूचक हैं कि आसुरी जनसंख्या में निश्चित रूप से वृद्धि हुई है।

आसुरी जनसंख्या में वृद्धि को रोकने के लिए वैदिक सभ्यता में सामाजिक जीवन के अनेक विधि-विधान थे, जिनमें से अच्छी संतान पाने के लिए गर्भाधान संस्कार प्रमुख था। भगवद्गीता में अर्जुन श्रीकृष्ण से कहते हैं कि यदि वर्णसंकर लोग उत्पन्न होंगे तो यह सारा संसार नरक जैसा लगेगा। लोग विश्व में शान्ति चाहते हैं, किन्तु गर्भाधान संस्कार का लाभ न उठा सकने के कारण अनेक अवांछित शिशु जन्म लेते रहते हैं—जिस प्रकार दिति के गर्भ से असुर उत्पन्न हुए थे। दिति इतनी कामातुर थी कि उसने अपने पति को अशुभ समय में संभोग के लिए बाध्य कर दिया जिसके कारण उत्पात मचाने वाले असुरों का जन्म हुआ। मनुष्य को चाहिए कि सन्तान उत्पन्न करने हेतु संभोग करते समय नियम का पालन करे जिससे अच्छी सन्तान हो। यदि प्रत्येक परिवार वैदिक विधि का पालन करे तो अच्छी सन्तान उत्पन्न होंगी, असुर नहीं होगे और विश्व में स्वत: शान्ति स्थापित हो सकेगी। यदि हम अपने जीवन में सामाजिक शान्ति के नियमों का पालन नहीं करते तो हमें शान्ति की आशा नहीं करनी चाहिए।

उल्टे, हमें प्राकृतिक नियमों की कठोर प्रतिक्रियाओं से जूझना होगा।

 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥