श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 17: हिरण्याक्ष की दिग्विजय  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.17.18 
प्रजापतिर्नाम तयोरकार्षीद्
य: प्राक् स्वदेहाद्यमयोरजायत ।
तं वै हिरण्यकशिपुं विदु: प्रजा
यं तं हिरण्याक्षमसूत साग्रत: ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
प्रजापति:—कश्यप ने; नाम—नाम; तयो:—दोनों के; अकार्षीत्—रखा; य:—जो; प्राक्—प्रथम; स्व-देहात्— अपने शरीर से; यमयो:—जुड़वों में से; अजायत—उत्पन्न हुआ; तम्—उसको; वै—निस्सन्देह; हिरण्यकशिपुम्— हिरण्यकशिपु; विदु:—जानते हैं; प्रजा:—लोग; यम्—जिसको; तम्—उसको; हिरण्याक्षम्—हिरण्याक्ष; असूत— जन्म दिया; सा—वह (दिति); अग्रत:—पहले ।.
 
अनुवाद
 
 जीवात्माओं के सृष्टा कश्यप ने अपने जुड़वां पुत्रों का नामकरण किया। जो पहले उत्पन्न हुआ उसका नाम उन्होंने हिरण्याक्ष रखा और जिसको दिति ने पहले गर्भ में धारण किया था उसका नाम हिरण्यकशिपु रखा।
 
तात्पर्य
 पिंड सिद्धि नामक प्रामाणिक वैदिक ग्रंथ में गर्भावस्था का बहुत ही सुन्दर वैज्ञानिक वर्णन मिलता है। यह बताया गया है कि मनुष्य के वीर्य के दो बिन्दु क्रमश: स्त्री के गर्भाशय में प्रविष्ट होते हैं, तो दो भ्रूणों का विकास होता है और जब वे गर्भ से बाहर निकलते हैं, तो वे गर्भधारण के क्रम से विपरीत क्रम में निकलते हैं। अत: जिस शिशु का पहले गर्भ- धारण होता है, वह बाद में जन्म लेता है और बाद वाला पहले जन्म लेता है। यहाँ पर हिरण्याक्ष पहले प्रकट होता है, जिसका तात्पर्य यह हुआ कि वह बाद में गर्भ में आया था जबकि हिरण्यकशिपु पहले गर्भ में आया था इसलिए वह बाद में प्रकट हुआ।
 
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