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श्लोक  |
ततो निवृत्त: क्रीडिष्यन् गम्भीरं भीमनिस्वनम् ।
विजगाहे महासत्त्वो वार्धिं मत्त इव द्विप: ॥ २४ ॥ |
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शब्दार्थ |
तत:—तब; निवृत्त:—लौट आया; क्रीडिष्यन्—क्रीड़ा (कौतुक) करने के लिए; गम्भीरम्—गहरे; भीम-निस्वनम्— घोर गर्जना करता; विजगाहे—डुबकी लगाई; महा-सत्त्व:—शक्तिमान प्राणी; वार्धिम्—समुद्र में; मत्त:—क्रोध में; इव—समान; द्विप:—हाथी ।. |
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अनुवाद |
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स्वर्गलोक से लौटने के बाद मतवाले हाथी के समान उस महाबली असुर ने भयानक गर्जना करते हुए गहरे समुद्र में क्रीड़ावश डुबकी लगाई। |
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