|
|
|
श्लोक  |
उत्पाता बहवस्तत्र निपेतुर्जायमानयो: ।
दिवि भुव्यन्तरिक्षे च लोकस्योरुभयावहा: ॥ ३ ॥ |
|
शब्दार्थ |
उत्पाता:—प्राकृतिक उपद्रव; बहव:—अनेक; तत्र—वहाँ; निपेतु:—घटित हुए; जायमानयो:—उनके जन्म के समय; दिवि—स्वर्गलोक में; भुवि—पृथ्वी पर; अन्तरिक्षे—बाह्य आकाश में; च—तथा; लोकस्य—संसार का; उरु— अत्यधिक; भय-आवहा:—भय उत्पन्न करने वाला, भयानक ।. |
|
अनुवाद |
|
दोनों असुरों के जन्म के समय स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक तथा इन दोनों के मध्य के लोकों में अनेक प्राकृतिक उपद्रव हुए जो अत्यन्त भयावने एवं विस्मयपूर्ण थे। |
|
|
|
शेयर करें
 |