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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 17: हिरण्याक्ष की दिग्विजय  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.17.7 
चुक्रोश विमना वार्धिरुदूर्मि: क्षुभितोदर: ।
सोदपानाश्च सरितश्चुक्षुभु: शुष्कपङ्कजा: ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
चुक्रोश—जोर जोर से विलाप करने लगा; विमना:—दुखी; वार्धि:—समुद्र; उदूर्मि:—ऊँची ऊँची लहरें; क्षुभित— विक्षुब्ध; उदर:—भीतर के प्राणी; स-उदपाना:—जलाशयों तथा कुंओं के पेयजल सहित; —तथा; सरित:— नदियाँ; चुक्षुभु:—क्षुब्ध हुए; शुष्क—सूखे हुए; पङ्कजा:—कमल पुष्प ।.
 
अनुवाद
 
 उत्ताल तरंगों से युक्त सागर मानो शोक में जोर जोर से विलाप कर रहा था और उसमें रहने वाले प्राणियों में हलचल मची थी। नदियाँ तथा सरोवर भी विक्षुब्ध हो उठे और कमल मुरझा गये।
 
 
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