मुहु:—पुन: पुन:; परिधय:—कुहरे से युक्त मण्डल; अभूवन्—प्रकट हुआ; स-राह्वो:—ग्रहणों के समय; शशि— चन्द्रमा का; सूर्ययो:—सूर्य का; निर्घाता:—गर्जन; रथ-निर्ह्रादा:—घर्घर करते रथों का सा शब्द; विवरेभ्य:—पर्वत की गुफाओं से; प्रजज्ञिरे—उत्पन्न हो रहा था ।.
अनुवाद
सूर्य तथा चन्द्रमा के चारों ओर ग्रहण लगने के समय अमंगल-सूचक मण्डल बार बार दिखाई पडऩे लगा। बिना बादलों के ही गरजने की ध्वनि और पर्वत की गुफाओं से रथों जैसी घरघराहट सुनाई पडऩे लगी।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.