|
|
|
श्लोक 3.17.9  |
अन्तर्ग्रामेषु मुखतो वमन्त्यो वह्निमुल्बणम् ।
सृगालोलूकटङ्कारै: प्रणेदुरशिवं शिवा: ॥ ९ ॥ |
|
शब्दार्थ |
अन्त:—भीतर; ग्रामेषु—गाँवों के; मुखत:—उनके मुखों से; वमन्त्य:—उगलते हुए; वह्निम्—आग; उल्बणम्— भयावनी; सृगाल—सियार; उलूक—उल्लू; टङ्कारै:—चीख से; प्रणेदु:—उत्पन्न; अशिवम्—अशुभ, अमंगलसूचक; शिवा:—सियारिनें ।. |
|
अनुवाद |
|
गाँवों के भीतर सियारिनें अपने मुखों से दहकती आग उगलती हुई अमंगल सूचक शब्द करने लगीं। इस रोने में सियार तथा उल्लू भी साथ हो लिये। |
|
|
|
शेयर करें
 |