श्रीमैत्रेय ने कहा—जब श्रीभगवान् ने उस राक्षस को इस प्रकार ललकारा तो वह क्रुद्ध और क्षुब्ध हुआ और क्रोध से इस प्रकार काँपने लगा, जिस प्रकार छेड़ा गया हुआ विषधर सर्प।
तात्पर्य
सामान्य पुरुषों के समक्ष नाग (सर्प) अत्यन्त डऱावना हो जाता है, किन्तु सँपेरे के समक्ष तो वह खेलने की वस्तु बन जाता है। इसी तरह भले ही कोई असुर अपने प्रभाव क्षेत्र में कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, किन्तु भगवान् के समक्ष वह निरीह होता है। रावण देवताओं के समक्ष अत्यन्त भयावना व्यक्ति था, किन्तु जब वह भगवान् रामचद्र के समक्ष आया तो काँप रहा था और उसने अपने देव शिवजी से प्रार्थना की, किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ।
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