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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 18: भगवान् वराह तथा असुर हिरण्याक्ष के मध्य युद्ध  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.18.16 
पुनर्गदां स्वामादाय भ्रामयन्तमभीक्ष्णश: ।
अभ्यधावद्धरि: क्रुद्ध: संरम्भाद्दष्टदच्छदम् ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
पुन:—फिर; गदाम्—गदा; स्वाम्—अपना; आदाय—लेकर; भ्रामयन्तम्—घुमाता हुआ; अभीक्ष्णश:—बारम्बार; अभ्यधावत्—भेंट करने के लिए दौड़ा; हरि:—श्रीभगवान्; क्रुद्ध:—नाराज; संरम्भात्—क्रोध में; दष्ट—काटता हुआ, चबाता हुआ; दच्छदम्—अपना होठ ।.
 
अनुवाद
 
 तब श्री भगवान् अपना क्रोध प्रदर्शित करते हुए उस राक्षस की ओर झपटे जो क्रोध के कारण अपने होठ चबा रहा था। उसने फिर से अपनी गदा उठाई और उसे बारम्बार घुमाने लगा।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥