श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 18: भगवान् वराह तथा असुर हिरण्याक्ष के मध्य युद्ध  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.18.17 
ततश्च गदयारातिं दक्षिणस्यां भ्रुवि प्रभु: ।
आजघ्ने स तु तां सौम्य गदया कोविदोऽहनत् ॥ १७ ॥
 
शब्दार्थ
तत:—तब; च—तथा; गदया—अपनी गदा से; अरातिम्—शत्रु को; दक्षिणस्याम्—दाईं ओर; भ्रुवि—भौंह पर; प्रभु:—भगवान् ने; आजघ्ने—प्रहार किया; स:—भगवान्; तु—लेकिन; ताम्—गदा; सौम्य—हे भद्र विदुर; गदया—अपनी गदा से; कोविद:—कुशल; अहनत्—उसने अपने को बचा लिया ।.
 
अनुवाद
 
 तब भगवान् ने अपनी गदा से शत्रु की दाहिनी भौंह पर प्रहार किया, किन्तु वह असुर युद्ध में कुशल था, इसलिए, हे भद्र विदुर, उसने अपनी गदा की चाल से अपने आपको बचा लिया।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥