हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 18: भगवान् वराह तथा असुर हिरण्याक्ष के मध्य युद्ध  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  3.18.21 
आसन्नशौण्डीरमपेतसाध्वसं
कृतप्रतीकारमहार्यविक्रमम् ।
विलक्ष्य दैत्यं भगवान् सहस्रणी-
र्जगाद नारायणमादिसूकरम् ॥ २१ ॥
 
शब्दार्थ
आसन्न—प्राप्त करके; शौण्डीरम्—शक्ति; अपेत—विहीन; साध्वसम्—भय; कृत—करके; प्रतीकारम्—विरोध; अहार्य—निर्विरोध होकर; विक्रमम्—शक्ति युक्त; विलक्ष्य—देखकर; दैत्यम्—असुर को; भगवान्—पूज्य ब्रह्मा ने; सहस्र-नी:—हजारों ऋषियों के नायक; जगाद—सम्बोधित किया; नारायणम्—भगवान् नारायण को; आदि—मूल; सूकरम्—सूकर रूप ।.
 
अनुवाद
 
 युद्धस्थल में पहुँचकर हजारों ऋषियों तथा योगियों के नायक ब्रह्माजी ने असुर को देखा, जिसने अभूतपूर्व शक्ति प्राप्त कर ली थी जिससे कोई भी उससे युद्ध नहीं कर सकता था। तब ब्रह्मा ने आदि सूकर रूप धारण करने वाले नारायण को सम्बोधित किया।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥