न यावदेष वर्धेत स्वां वेलां प्राप्य दारुण: ।
स्वां देव मायामास्थाय तावज्जह्यघमच्युत ॥ २५ ॥
शब्दार्थ
न यावत्—इसके पूर्व कि; एष:—यह असुर; वर्धेत—बढ़े; स्वाम्—स्वत:; वेलाम्—आसुरी वेला; प्राप्य—प्राप्त करके; दारुण:—भयंकर, दुर्जय; स्वाम्—निजी; देव—हे भगवान्; मायाम्—अन्तरंगा शक्ति; आस्थाय—प्रयोग करके; तावत्—तुरन्त; जहि—मार डालें; अघम्—पापी; अच्युत—हे अच्युत या अमोघ ।.
अनुवाद
ब्रह्माजी ने आगे कहा—हे भगवान्, आप अच्युत हैं। कृपा करके इस पापी असुर को इसके पूर्व कि आसुरी घड़ी आए और यह अपने अनुकूल दूसरा भयंकर शरीर धारण कर सके, आप इसका वध कर दें। निस्सन्देह आप इसे अपनी अन्तरंगा शक्ति से मार सकते हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.