श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 18: भगवान् वराह तथा असुर हिरण्याक्ष के मध्य युद्ध  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.18.25 
न यावदेष वर्धेत स्वां वेलां प्राप्य दारुण: ।
स्वां देव मायामास्थाय तावज्जह्यघमच्युत ॥ २५ ॥
 
शब्दार्थ
न यावत्—इसके पूर्व कि; एष:—यह असुर; वर्धेत—बढ़े; स्वाम्—स्वत:; वेलाम्—आसुरी वेला; प्राप्य—प्राप्त करके; दारुण:—भयंकर, दुर्जय; स्वाम्—निजी; देव—हे भगवान्; मायाम्—अन्तरंगा शक्ति; आस्थाय—प्रयोग करके; तावत्—तुरन्त; जहि—मार डालें; अघम्—पापी; अच्युत—हे अच्युत या अमोघ ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्माजी ने आगे कहा—हे भगवान्, आप अच्युत हैं। कृपा करके इस पापी असुर को इसके पूर्व कि आसुरी घड़ी आए और यह अपने अनुकूल दूसरा भयंकर शरीर धारण कर सके, आप इसका वध कर दें। निस्सन्देह आप इसे अपनी अन्तरंगा शक्ति से मार सकते हैं।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥