सौभाग्य से यह असुर स्वेच्छा से आपके पास आया है और आपके द्वारा ही इसकी मृत्यु विहित है, अत: आप इसे अपने ढंग से युद्ध में मारिये और लोकों में शान्ति स्थापित कीजिये।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के तीसरे स्कन्ध के अन्तर्गत “भगवान् वराह तथा हिरण्याक्ष के मध्य युद्ध” नामक अठारहवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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