जब श्रीभगवान् के चक्र से उसका त्रिशूल खण्ड खण्ड हो गया तो असुर अत्यन्त क्रोधित हुआ। अत: वह भगवान् की ओर लपका और तेज गर्जना करते हुए उनके चौेड़े वक्षस्थल पर, जिस पर श्रीवत्स का चिह्न था, अपनी कठोर मुष्टिका से प्रहार किया। फिर वह अदृश्य हो गया।
तात्पर्य
श्रीवत्स श्वेत बालों की भौंरी है, जो भगवान् के वक्षस्थल पर है और उनके श्रीभगवान् होने का विशिष्ट चिह्न है। वैकुण्ठ लोक अथवा गोलोक वृन्दावन के सभी निवासी श्रीभगवान् की ही समरूप होते हैं अत: इसी श्रीवत्स चिह्न के द्वारा भगवान् को अन्यों के बीच पहचाना जाता है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.