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श्लोक 3.19.20  |
गिरय: प्रत्यदृश्यन्त नानायुधमुचोऽनघ ।
दिग्वाससो यातुधान्य: शूलिन्यो मुक्तमूर्धजा: ॥ २० ॥ |
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शब्दार्थ |
गिरय:—पर्वत; प्रत्यदृश्यन्त—दिखने लगे; नाना—अनेक प्रकार के; आयुध—अस्त्र-शस्त्र; मुच:—छोड़ते हुए; अनघ—हे पापमुक्त विदुर; दिक्-वासस:—नंगी; यातुधान्य:—राक्षसिनियाँ; शूलिन्य:—त्रिशूलों से सज्जित; मुक्त— लटकते; मूर्धजा:—बाल ।. |
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अनुवाद |
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हे अनघ विदुर, पर्वतों से नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र निकलने लगे और त्रिशूल धारण किये हुए नग्न राक्षसिनियाँ अपने खुले केश लटकाते हुए प्रकट हो गईं। |
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