बहुभिर्यक्षरक्षोभि: पत्त्यश्वरथकुञ्जरै: ।
आततायिभिरुत्सृष्टा हिंस्रा वाचोऽतिवैशसा: ॥ २१ ॥
शब्दार्थ
बहुभि:—अनेक; यक्ष-रक्षोभि:—यक्षों तथा राक्षसों के द्वारा; पत्ति—पैदल; अश्व—घुड़सवार; रथ—रथ पर चढ़े हुए; कुञ्जरै:—अथवा हाथियों से; आततायिभि:—आततायियों द्वारा; उत्सृष्टा:—उच्चारित; हिंस्रा:—क्रूर; वाच:—शब्द; अति-वैशसा:—हिंसक ।.
अनुवाद
यक्षों तथा राक्षस आततायियों के समूह के समूह अत्यन्त क्रूर एवं अशिष्ट नारे लगा रहे थे, जिनमें से अनेक या तो पैदल जा रहे थे, या घोड़े, हाथियों अथवा रथों पर सवार थे।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.