उसी क्षण, हिरण्याक्ष की माता दिति के हृदय में सहसा एक थरथराहट हुई। उसे अपने पति कश्यप के वचनों का स्मरण हो आया और उसके स्तनों से रक्त बहने लगा।
तात्पर्य
हिरण्याक्ष के अन्तिम समय पर उसकी माता दिति को अपने पति के वचनों का स्मरण हो आया कि यद्यपि उसके पुत्र असुर होंगे, किन्तु स्वयं भगवान् के हाथों से मारे जाने का वे लाभ उठाएंगे। भगवत्कृपा से उसे ये वचन स्मरण हो आये और उसके स्तनों से दूध के बजाय रक्त बह निकला। यह कई बार देखा गया है कि जब माता अपने पुत्रों के स्नेह से विचलित हो उठती है, तो उसके स्तनों से दूध बहने लगता है। यहाँ पर असुर की माता का रक्त दूध में नहीं बदल सका वरन् उसी रूप में बह निकला। रक्त ही दूध में बदलता है। दूध का पीना शुभ है, किन्तु रक्त पीना अशुभ है, यद्यपि दोनों एक ही हैं। यही बात गाय के दूध पर भी लागू होती है।
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