श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 19: असुर हिरण्याक्ष का वध  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  3.19.28 
यं योगिनो योगसमाधिना रहो
ध्यायन्ति लिङ्गादसतो मुमुक्षया ।
तस्यैष दैत्यऋषभ: पदाहतो
मुखं प्रपश्यंस्तनुमुत्ससर्ज ह ॥ २८ ॥
 
शब्दार्थ
यम्—जिसको; योगिन:—योगी जन; योग-समाधिना—योग की समाधि में; रह:—एकान्त में; ध्यायन्ति—ध्यान धरते हैं; लिङ्गात्—शरीर से; असत:—मिथ्या; मुमुक्षया—मुक्ति की इच्छा से; तस्य—उसका; एष:—यह; दैत्य—दिति का पुत्र; ऋषभ:—श्रेष्ठ मणि; पदा—पाँव से; आहत:—मारा गया; मुखम्—मुँह; प्रपश्यन्—देखते या ताकते हुए; तनुम्—शरीर; उत्ससर्ज—छोड़ दिया; ह—निस्सन्देह ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्मा ने आगे कहा—योगीजन योगसमाधि में अपने मिथ्या भौतिक शरीरों से छूटने के लिए जिसका एकान्त में ध्यान करते हैं, उन श्रीभगवान् के पादाग्र से इस पर प्रहार हुआ है। दिति के पुत्रों में शिरोमणि इसने भगवान् का मुख देखते-देखते अपने मर्त्य शरीर का त्याग किया है।
 
तात्पर्य
 श्रीमद्भागवत के इस श्लोक में योगविधि का स्पष्ट वर्णन हुआ है। कहा जाता है कि ध्यान करने वाले योगियों का चरम-लक्ष्य इस भौतिक शरीर से छुटकारा पाना है। फलत: वे समाधि प्राप्त करने के लिए एकान्त में ध्यान करते हैं। योग एकान्त में सम्पन्न होना चाहिए; किसी सार्वजनिक स्थल या मंच पर नहीं जैसाकि आजकल के कई तथाकथित योगी करते हैं। वास्तविक योग का उद्देश्य भौतिक देह से छुटकारा पाना है। योगाभ्यास का उद्देश्य शरीर को चुस्त तथा तरुण बनाये रखना नहीं है। किसी भी आदर्श विधि में तथाकथित योग के ऐसे विज्ञापनों की अनुमति नहीं दी गई है। इस श्लोक में एक शब्द यम् अर्थात् ‘उसको’ आया है, जो इसका संकेत देता है कि ध्यान का लक्ष्य श्रीभगवान् होना चाहिए। यदि कोई भगवान् के वराह रूप का भी ध्यान धरता है, तो वह भी योग है। जैसाकि भगवद्गीता में पुष्टि की गई है, जो मनुष्य भगवान् के विविध रूपों में से किसी एक पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है, वह उच्चकोटि का योगी है और वह भगवान् के स्वरूप का चिन्तन करता हुआ सरलता से समाधि को प्राप्त होता है। यदि कोई अपनी मृत्यु के समय भी भगवान् का ध्यान कर सके तो वह इस भौतिक शरीर से मुक्त होकर भगवान् के धाम को चला जाता है। भगवान् ने इस असुर को यह सुअवसर प्रदान किया, फलत: ब्रह्मा समेत सभी देवाताओं को आश्चर्य हुआ। दूसरे शब्दों में, कहा जा सकता है कि भगवान् के केवल पाद-प्रहार से असुर को भी योगसिद्धि प्राप्त हो सकती है।
 
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