श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 19: असुर हिरण्याक्ष का वध  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  3.19.34 
अन्येषां पुण्यश्लोकानामुद्दामयशसां सताम् ।
उपश्रुत्य भवेन्मोद: श्रीवत्साङ्कस्य किं पुन: ॥ ३४ ॥
 
शब्दार्थ
अन्येषाम्—दूसरों का; पुण्य-श्लोकानाम्—पवित्र यश का; उद्दाम-यशसाम्—जिनकी ख्याति सर्वत्र फैली है; सताम्—भक्तों का; उपश्रुत्य—सुन करके; भवेत्—उठ सकते हैं; मोद:—आनन्द; श्रीवत्स-अङ्कस्य—श्रीवत्स चिह्न धारण करने वाले भगवान् का; किम् पुन:—फिर क्या कहना ।.
 
अनुवाद
 
 मनुष्य चाहें तो अमर यश वाले भक्तों के कार्यकलापों को सुनकर आनन्द उठा सकते हैं, फिर श्रीवत्सधारी श्रीभगवान् की लीलाओं के श्रवण का कहना ही क्या!
 
तात्पर्य
 भागवतम् का शाब्दिक अर्थ है भगवान् तथा उनके भक्तों की लीलाएँ— उदाहरणार्थ, भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाएँ तथा प्रह्लाद, ध्रुव तथा महाराज अम्बरीश जैसे भक्तों के आख्यान। ये दोनों प्रकार की लीलाएँ पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् से सम्बद्ध हैं, क्योंकि भक्तों की लीलाएँ उन्हीं से सम्बन्धित हैं। उदाहरणार्थ, महाभारत में पाण्डवों का इतिहास एवं उनके कार्य-कलाप हैं, अत: वह पवित्र है, क्योंकि पाण्डवों का श्रीभगवान् से सीधा सम्बन्ध था।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥