श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 19: असुर हिरण्याक्ष का वध  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  3.19.6 
तं व्यग्रचक्रं दितिपुत्राधमेन
स्वपार्षदमुख्येन विषज्जमानम् ।
चित्रा वाचोऽतद्विदां खेचराणां
तत्र स्मासन् स्वस्ति तेऽमुं जहीति ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—श्रीभगवान् को; व्यग्र—घूमते हुए; चक्रम्—जिसका चक्र; दिति-पुत्र—दिति का पुत्र; अधमेन—नीच; स्व पार्षद—अपने सहयोगियों का; मुख्येन—प्रमुख सहित; विषज्जमानम्—खेलते हुए; चित्रा:—विविध; वाच:— अभिव्यक्तियाँ; अ-तत्-विदाम्—न जानने वालों का; खे-चराणाम्—आकाश में उड़ते हुए; तत्र—वहाँ; स्म आसन्— घटित हुआ; स्वस्ति—कल्याण; ते—आपका; अमुम्—उसको; जहि—मार डालें; इति—इस प्रकार ।.
 
अनुवाद
 
 जब चक्र भगवान् के हाथों में घूमने लगा और वे अपने वैकुण्ठवासी पार्षदों के मुखिया से, जो दिति के नीच पुत्र हिरण्याक्ष के रूप में प्रकट हुआ था, खेलने लगे तो अपने-अपने विमानों से देखने वाले देवता इत्यादि प्रत्येक दिशा से विचित्र-विचित्र शब्द निकालने लगे। उन्हें भगवान् की वास्तविकता ज्ञात न थी, अत: वे उद्घोष करने लगे “आपकी जय हो, कृपा करके उसे मार डालें, अब उसके साथ अधिक खिलवाड़ न करें।”
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥