जब चक्र भगवान् के हाथों में घूमने लगा और वे अपने वैकुण्ठवासी पार्षदों के मुखिया से, जो दिति के नीच पुत्र हिरण्याक्ष के रूप में प्रकट हुआ था, खेलने लगे तो अपने-अपने विमानों से देखने वाले देवता इत्यादि प्रत्येक दिशा से विचित्र-विचित्र शब्द निकालने लगे। उन्हें भगवान् की वास्तविकता ज्ञात न थी, अत: वे उद्घोष करने लगे “आपकी जय हो, कृपा करके उसे मार डालें, अब उसके साथ अधिक खिलवाड़ न करें।”
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