श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 19: असुर हिरण्याक्ष का वध  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.19.8 
करालदंष्ट्रश्चक्षुर्भ्यां सञ्चक्षाणो दहन्निव ।
अभिप्लुत्य स्वगदया हतोऽसीत्याहनद्धरिम् ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
कराल—भयावने; दंष्ट्र:—दाढ़ों वाले; चक्षुर्भ्याम्—दोनों आँखों से; सञ्चक्षाण:—घूरते हुए; दहन्—जलता हुआ; इव—मानो; अभिप्लुत्य—आक्रमण करके; स्व-गदया—अपनी गदा से; हत:—बधे हुए; असि—तुम हो; इति—इस प्रकार; आहनत्—प्रहार किया; हरिम्—हरि पर ।.
 
अनुवाद
 
 भयावनी दाढ़ों वाला वह असुर श्रीभगवान् को इस प्रकार घूर रहा था मानो वह उन्हें भस्म कर देगा। उसने हवा में उछलकर भगवान् पर अपनी गदा तानी और तभी जोर से चीखा, “तुम मारे जा चुके।”
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥