पदा सव्येन तां साधो भगवान् यज्ञसूकर: ।
लीलया मिषत: शत्रो: प्राहरद्वातरंहसम् ॥ ९ ॥
शब्दार्थ
पदा—अपने पाँव से; सव्येन—बायें; ताम्—उस गदा को; साधो—हे विदुर; भगवान्—श्रीभगवान्; यज्ञ-सूकर:— समस्त यज्ञों के भोक्ता, अपने शूकर रूप में; लीलया—खिलवाड़ में; मिषत:—देखते हुए; शत्रो:—अपने शत्रु (हिराण्याक्ष) का; प्राहरत्—गिरा दिया; वात-रंहसम्—तूफान के वेग से ।.
अनुवाद
हे साधु विदुर, समस्त यज्ञों की बलि के भोक्ता श्रीभगवान् ने अपने सूकर रूप में अपने शत्रु के देखते-देखते खेल-खेल में उसकी उस गदा को अपने बाँए पाँव से नीचे गिरा दिया यद्यपि वह तूफान के वेग से उनकी ओर आ रही थी।
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