श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 2: भगवान् कृष्ण का स्मरण  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  3.2.3 
स कथं सेवया तस्य कालेन जरसं गत: ।
पृष्टो वार्तां प्रतिब्रूयाद्भर्तु: पादावनुस्मरन् ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
स:—उद्धव; कथम्—कैसे; सेवया—ऐसी सेवा से; तस्य—उसका; कालेन—समय के साथ; जरसम्—अशक्तता को; गत:— प्राप्त; पृष्ट:—पूछे जाने पर; वार्ताम्—सन्देश; प्रतिब्रूयात्—उत्तर देने के लिए; भर्तु:—भगवान् के; पादौ—चरण कमलों का; अनुस्मरन्—स्मरण करते हुए ।.
 
अनुवाद
 
 इस तरह उद्धव अपने बचपन से ही लगातार कृष्ण की सेवा करते रहे और उनकी वृद्धावस्था में सेवा की वह प्रवृत्ति कभी शिथिल नहीं हुई। जैसे ही उनसे भगवान् के सन्देश के विषय में पूछा गया, उन्हें तुरन्त उनके विषय में सब कुछ स्मरण हो आया।
 
तात्पर्य
 भगवान् के प्रति दिव्य सेवा लौकिक नहीं होती। भक्त की सेवा-प्रवृत्ति क्रमश: बढ़ती जाती है और वह कभी शिथिल नहीं पड़ती। सामान्यतया वृद्धावस्था में व्यक्ति को संसारी सेवा से निवृत्ति लेने की अनुमति दे दी जाती है, किन्तु भगवान् की दिव्य सेवा से कोई निवृत्त नहीं होता। विपरित इसके आयु बढऩे के साथ-साथ भक्ति की प्रवृत्ति अधिकाधिक बढ़ती जाती है। चूँकि दिव्य सेवा में तृप्ति नहीं होती, अत: इससे कोई निवृत्ति नहीं होती है। भौतिक दृष्टि से जब मनुष्य अपने भौतिक शरीर से सेवा करते करते थक जाता है, तो उसे सेवा से निवृत्ति की अनुमति दे दी जाती है, किन्तु दिव्य सेवा में थकान का अनुभव नहीं होता, क्योंकि यह आध्यात्मिक सेवा होती है और शारीरिक स्तर पर नहीं होती। शारीरिक स्तर पर होने वाली सेवा शरीर के वृद्ध होने के साथ घटती जाती है, किन्तु आत्मा कभी वृद्ध नहीं होता, अत: आध्यात्मिक स्तर पर सेवा कभी उबाऊ नहीं लगती।

निस्सन्देह, उद्धव वृद्ध हो चुके थे, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि उनकी आत्मा वृद्ध हो गई थी। दिव्य स्तर पर उनकी सेवा-प्रवृत्ति परिपक्व हो चुकी थी, अतएव जब विदुर ने कृष्ण के विषय में प्रश्न किया, तो उन्होंने तुरन्त भगवान् को सारे सन्दर्भों सहित स्मरण किया और वे शारीरिक स्तर पर स्वयं को भूल गये। यह शुद्ध भगवद्भक्ति का लक्षण है, जैसाकि बाद में भगवान् कपिल द्वारा अपनी माता देवहूति को दिये गये (लक्षणं भक्ति योगस्य...) उपदेशों के प्रसंग में बतलाया जाएगा।

 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥