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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 2: भगवान् कृष्ण का स्मरण  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  3.2.30 
प्रयुक्तान् भोजराजेन मायिन: कामरूपिण: ।
लीलया व्यनुदत्तांस्तान् बाल: क्रीडनकानिव ॥ ३० ॥
 
शब्दार्थ
प्रयुक्तान्—लगाये गये; भोज-राजेन—कंस द्वारा; मायिन:—बड़े-बड़े जादूगर, मायावी; काम-रूपिण:—इच्छानुसार रूप धारण करने वाले; लीलया—लीलाओं के दौरान; व्यनुदत्—मार डाला; तान्—उनको; तान्—जैसे ही वे निकट आये; बाल:—बालक; क्रीडनकान्—खिलौनों; इव—सदृश ।.
 
अनुवाद
 
 भोज के राजा कंस ने कृष्ण को मारने के लिए बड़े-बड़े जादूगरों को लगा रखा था, जो कैसा भी रूप धारण कर सकते थे। किन्तु अपनी लीलाओं के दौरान भगवान् ने उन सबों को उतनी ही आसानी से मार डाला जिस तरह कोई बालक खिलौनों को तोड़ डालता है।
 
तात्पर्य
 नास्तिक कंस कृष्ण को जन्मते ही मार डालना चाहता था। वह ऐसा करने में विफल रहा, किन्तु बाद में उसे यह जानकारी मिली कि कृष्ण वृन्दावन में नन्द महाराज के घर में रह रहे हैं। अतएव उसने कई जादूगर लगाये जो अद्भुत कार्य कर सकते थे और इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर सकते थे। वे सभी बालक भगवान् के समक्ष विविध रूपों में, यथा अघ, बक, पूतना, शकट, तृणावर्त, धेनुक तथा गर्दभ रूपों में प्रकट हुए और हर बार उन्होंने भगवान् को मार डालने का प्रयास किया। किन्तु भगवान् ने एक-एक करके सबों को इस तरह मार डाला मानो वे खिलौनों से खेल रहे हों। बच्चे सिंह, हाथी, भालू तथा अन्य ऐसे ही विविध खिलौनों से खेलते हैं और खेलते खेलते वे इनको तोड़ डालते हैं। शक्तिशाली भगवान् के सामने कोई भी शक्तिशाली जीव खेलते हुए बच्चे के हाथों में सिंह के खिलौने के समान होता है। कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह ईश्वर से बढक़र नहीं हो सकता। अतएव कोई भी व्यक्ति न तो उनके समान हो सकता है, न उनसे बड़ा। न ही किसी भी प्रकार के प्रयत्न से कोई व्यक्ति ईश्वर की समता कर सकता है। ज्ञान, योग तथा भक्ति ये आध्यात्मिक साक्षात्कार की तीन मान्य विधियाँ हैं। ऐसी विधियों की पूर्णता मनुष्य को आध्यात्मिक मूल्यों में जीवन के वांछित गन्तव्य तक पहुँचा सकती है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि ऐसे प्रयत्नों से मनुष्य भगवान् की ही जैसी पूर्णता प्राप्त कर सकता है। भगवान् प्रत्येक अवस्था में भगवान् रहते हैं। जब वे यशोदामाई की गोद में शिशु की तरह या जब वे ग्वलाबाल के रूप में अपने दिव्य मित्रों के साथ खेल रहे थे तो वे अपने षडैश्वर्यों में किञ्चित कमी किये बिना ईश्वर बने रहे। इस तरह वे सदैव अद्वय हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥