हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 2: भगवान् कृष्ण का स्मरण  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  3.2.33 
वर्षतीन्द्रे व्रज: कोपाद्भग्नमानेऽतिविह्वल: ।
गोत्रलीलातपत्रेण त्रातो भद्रानुगृह्णता ॥ ३३ ॥
 
शब्दार्थ
वर्षति—जब बरसात में; इन्द्रे—इन्द्र द्वारा; व्रज:—गौवों की भूमि (वृन्दावन); कोपात् भग्नमाने—अपमानित होने से क्रुद्ध; अति—अत्यधिक; विह्वल:—विचलित; गोत्र—गायों के लिए पर्वत; लीला-आतपत्रेण—छाता की लीला द्वारा; त्रात:—बचा लिये गये; भद्र—हे सौम्य; अनुगृह्णता—कृपालु भगवान् द्वारा ।.
 
अनुवाद
 
 हे भद्र विदुर, अपमानित होने से राजा इन्द्र ने वृन्दावन पर मूसलाधार वर्षा की। इस तरह गौवों की भूमि व्रज के निवासी बहुत ही व्याकुल हो उठे। किन्तु दयालु भगवान् कृष्ण ने अपने लीलाछत्र गोवर्धन पर्वत से उन्हें संकट से उबार लिया।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥