श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 20: मैत्रेय-विदुर संवाद  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.20.10 
ये मरीच्यादयो विप्रा यस्तु स्वायम्भुवो मनु: ।
ते वै ब्रह्मण आदेशात्कथमेतदभावयन् ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
ये—जो; मरीचि-आदय:—मरीचि आदि महर्षि; विप्रा:—ब्राह्मण; य:—जो; तु—निस्सन्देह; स्वायम्भुव: मनु:—तथा स्वायंभुव मनु; ते—वे; वै—निस्सन्देह; ब्रह्मण:—भगवान् ब्रह्मा के; आदेशात्—आज्ञा से; कथम्—कैसे; एतत्—यह ब्रह्माण्ड; अभावयन्—उत्पन्न हुआ ।.
 
अनुवाद
 
 विदुर ने पूछा—प्रजापतियों (मरीचि तथा स्वायंभुव मनु जैसे जीवों के आदि जनक) ने ब्रह्मा के आदेश के अनुसार किस प्रकार सृष्टि की और इस दृश्य जगत का किस प्रकार विकास किया?
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥