श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 20: मैत्रेय-विदुर संवाद  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  3.20.11 
सद्वितीया: किमसृजन् स्वतन्त्रा उत कर्मसु ।
आहोस्वित्संहता: सर्व इदं स्म समकल्पयन् ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
स-द्वितीया:—अपनी पत्नियों सहित; किम्—क्या; असृजन्—उत्पन्न किया; स्व-तन्त्रा:—स्वतन्त्र रहकर; उत— अथवा; कर्मसु—अपने कार्यों में; आहो स्वित्—अथवा; संहता:—मिलकर, एकसाथ; सर्वे—सभी प्रजापति; इदम्—यह; स्म समकल्पयन्—रचना की ।.
 
अनुवाद
 
 क्या उन्होंने इस जगत की सृष्टि अपनी-अपनी पत्नियों के सहयोग से की अथवा वे स्वतन्त्र रूप से अपना कार्य करते रहे? या कि उन्होंने संयुक्त रूप से इसकी रचना की?
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥