मैत्रेय ने कहा—जब प्रकृति के तीन तत्त्वों के सहयोग का सन्तुलन जीवात्मा की अदृश्य क्रियाशीलता, महाविष्णु तथा कालशक्ति के द्वारा विक्षुब्ध हुआ तो समग्र भौतिक तत्त्व (महत्-तत्त्व) उत्पन्न हुए।
तात्पर्य
यहाँ पर भौतिक सृष्टि के कारण का अत्यन्त रोचक वर्णन हुआ है। प्रथम कारण दैव अर्थात् बद्धजीव का भाग्य है। यह भौतिक सृष्टि बद्धजीव के सुख के लिए विद्यमान है, जो इन्द्रियतृप्ति के लिए उसी का झूठा स्वामी बनना चाहता है। किसी को यह नहीं ज्ञात है कि बद्धजीव ने सबसे पहले कब इस भौतिक प्रकृति पर स्वामित्व प्राप्त करने की इच्छा की, किन्तु वैदिक साहित्य से यह ज्ञात होता है कि यह भौतिक सृष्टि बद्धजीव के इन्द्रिय-सुख के निमित्त है। एक सुन्दर श्लोक है, जिसमें कहा गया है कि बद्धजीव के इन्द्रिय सुख का निष्कर्ष यह है कि जब बद्धजीव अपने प्रमुख कर्तव्य, भगवान् के प्रति सेवा, को भूल जाता है, तो वह इन्द्रिय-सुख का वातावरण तैयार करता है, जिसे माया कहते हैं और यही भौतिक सृष्टि का कारण है।
इस श्लोक में एक अन्य शब्द दुर्वितर्क्येण भी प्रयुक्त है। कोई यह तर्क नहीं कर सकता कि कब और कैसे बद्धजीव को इन्द्रिय-सुख की इच्छा हुई, किन्तु इसका कारण तो होना ही चाहिए। भौतिक प्रकृति ही बद्धजीव के इन्द्रिय-सुख के निमित्त वह वातावरण है, जिसकी सृष्टि भगवान् ने की है। यहाँ यह बताया गया है कि सृष्टि के प्रारम्भ में प्रकृति श्रीभगवान् विष्णु द्वारा विक्षुब्ध की जाती है। तीन विष्णुओं का उल्लेख मिलता है। ये तीनों हैं—महाविष्णु, गर्भोदकशायी विष्णु तथा क्षीरोदकशायी विष्णु। श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कंध में इन तीनों विष्णुओं की व्याख्या की गई है और इस श्लोक में भी इसी की पुष्टि होती है कि विष्णु ही सृष्टि के कारण हैं। भगवद्गीता से भी हमें पता चलता है कि प्रकृति कृष्ण अथवा विष्णु की अध्यक्षता में कार्य करना शुरू करती है और अब भी कार्यशील है, किन्तु श्रीभगवान् अपरिवर्तित हैं। भूल से यह नहीं सोचना चाहिए कि चूँकि यह सृष्टि श्रीभगवान् से उद्भूत है, अत: उन्होंने अपने आपको भौतिक दृश्य जगत में रूपान्तरित कर दिया है। वे सदैव अपने सगुण रूप में विद्यमान हैं, किन्तु यह दृश्य जगत उनकी अचिन्त्य शक्ति से उत्पन्न होता है। उस शक्ति की कार्यविधि को समझ पाना कठिन है, किन्तु वैदिक ग्रंथों से पता चलता है कि बद्धजीव अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है और पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की अध्यक्षता में प्रकृति के नियमानुसार उसे विशेष देह धारण करना होता है। परमात्मा के रूप में भगवान् सदैव उसके संग रहते हैं।
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