सोऽशयिष्टाब्धिसलिले आण्डकोशो निरात्मक: ।
साग्रं वै वर्षसाहस्रमन्ववात्सीत्तमीश्वर: ॥ १५ ॥
शब्दार्थ
स:—यह; अशयिष्ट—पड़ा रहा; अब्धि-सलिले—कारणार्णव के जल में; आण्ड-कोश:—अण्डा; निरात्मक:— अचेत अवस्था में; साग्रम्—कुछ अधिक; वै—निस्सन्देह; वर्ष-साहस्रम्—एक हजार वर्षों तक; अन्ववात्सीत्—स्थित हो गया; तम्—अंडे में; ईश्वर:—भगवान् ।.
अनुवाद
यह चमकीला अण्डा एक हजार वर्षों से भी अधिक काल तक अचेतन अवस्था में कारणार्णव के जल में पड़ा रहा। तब भगवान् ने इसके भीतर गर्भोदकशायी विष्णु के रूप में प्रवेश किया।
तात्पर्य
इस श्लोक से प्रतीत होता है कि सभी ब्रह्माण्ड
कारणार्णव में तैर रहे हैं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥