श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 20: मैत्रेय-विदुर संवाद  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.20.17 
सोऽनुविष्टो भगवता य: शेते सलिलाशये ।
लोकसंस्थां यथापूर्वं निर्ममे संस्थया स्वया ॥ १७ ॥
 
शब्दार्थ
स:—ब्रह्माजी ने; अनुविष्ट:—प्रविष्ट किया गया; भगवता—भगवान् द्वारा; य:—जो; शेते—शयन करता है; सलिल- आशये—गर्भोदक सागर में; लोक-संस्थाम्—ब्रह्माण्ड; यथा पूर्वम्—पूर्ववत्; निर्ममे—निर्माण किया; संस्थया— बुद्धि से; स्वया—अपनी ।.
 
अनुवाद
 
 जब गर्भोदकशायी भगवान् ब्रह्मा के हृदय में प्रवेश कर गये तो ब्रह्मा को बुद्धि आई और इस बुद्धि से उन्होंने ब्रह्माण्ड की पूर्ववत् सृष्टि प्रारम्भ कर दी।
 
तात्पर्य
 किसी काल विशेष में कारणोदशकशायी भगवान् विष्णु-कारण सागर में शयन करते हैं और अपनी श्वास से हजारों ब्रह्माण्डों की सृष्टि करते हैं। तब वे प्रत्येक ब्रह्माण्ड़ में गर्भोदकशायी विष्णु के रूप में पुन: प्रवेश करते हैं और अपने पसीने से प्रत्येक ब्रह्माण्ड के अर्धांश को भर देते हैं। शेष आधा भाग शून्य रहता है, जिसे बाह्य आकाश (अन्तरिक्ष) कहते हैं। तब उनके उदर से कमलपुष्प प्रकट होता है और प्रथम जीव ब्रह्मा की उत्पत्ति होती है। तब भगवान् पुन: क्षीरोदकशायी विष्णु के रूप में ब्रह्मा समेत प्रत्येक जीवात्मा के हृदय में प्रवेश करते हैं। भगवद्गीता के पंद्रहवें अध्याय से इसकी पुष्टि हुई है। भगवान् कहते हैं, “मैं सबों के हृदय में स्थित हूँ और मुझी से स्मृति तथा विस्मृति सम्भव हैं।” कर्म के साक्षीस्वरूप भगवान् प्रत्येक जीवात्मा को विगत कल्पान्त के प्रलय के समय जिसकी जो इच्छा थी उसे तदनुसार स्मृति तथा बुद्धि प्रदान करते हैं। यह बुद्धि अपनी क्षमता के अनुसार अथवा कर्म के नियम द्वारा प्राप्त होती है।

ब्रह्मा प्रथम जीवात्मा हैं और श्रीभगवान् ने उन्हें रजोगुण का अधिकारी बनाया, अत: उन्हें आवश्यक बुद्धि प्रदान की गई जो इतनी व्यापक तथा शक्तिशाली है, जिससे वे श्रीभगवान् के नियन्त्रण से लगभग स्वतन्त्र हो गये। जिस प्रकार उच्च पद वाला मैनेजर किसी संस्थान के मालिक के ही समान स्वतन्त्र होता है उसी प्रकार यहाँ ब्रह्मा को स्वतन्त्र बताया गया है, क्योंकि ब्रह्माण्ड को वश में रखने वाले भगवान् के प्रतिनिधि-रूप में वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के ही समान शक्तिमान तथा स्वतन्त्र हैं। भगवान् ने ब्रह्मा के भीतर परमात्मा रूप में उन्हें सृजन करने की बुद्धि प्रदान की। अत: प्रत्येक जीवात्मा की बुद्धि उसकी अपनी नहीं होती; यह तो भगवान् की कृपा है कि मनुष्य सृष्टि कर सकता है। इसी संसार में ऐसे अनेक वैज्ञानिक तथा महान् कार्यकर्ता हैं जिनमें अद्भुत सृजन-शक्ति है, किन्तु वे परमेश्वर के निर्देशन के अनुसार ही सृष्टि करते हैं। कोई वैज्ञानिक भगवान् के निर्देशन से अनेक आश्चर्यमय आविष्कार कर सकता है, किन्तु उसके वश में न तो यह है कि अपनी बुद्धि से वह भौतिक प्रकृति के कठोर नियमों पर विजय पा ले, न ही भगवान् से ऐसी बुद्धि प्राप्त कर पाना सम्भव है, क्योंकि तब भगवान् की सर्वोच्चता बाधित होगी। इस श्लोक में कहा गया है कि ब्रह्मा ने ब्रह्माण्ड की सृष्टि की जैसी यह पहले थी। इसका अर्थ यह हुआ कि उन्होंने उसी नाम तथा रूपवाली प्रत्येक वस्तु की सृष्टि की जैसी कि वे पहले के दृश्य जगत में थीं।

 
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